अगर ऐसा हो जाए
समस्या से बढ़कर,शर्म हो जाए, विश्वाश से बढ़कर, भ्रम हो जाए, चापलूसी ज्यादा बढ़कर, कम कर्म हो जाए, गुस्सा नर्म से बढ़कर , गर्म हो जाए, सरकारी फर्म से बढ़कर ,प्राइवेट फर्म हो जाए, इंसानियत से बढ़कर ,धर्म हो जाए, रिस्तों में प्यार से बढ़कर, पैसा हो जाए, पत्रकार सच से बढ़कर,झूठ दिखाने लग जाए, लोकतंत्र होने से बढ़कर ,दिखावे का हो जाए, अगर ये सब हो जाए तो फिर क्या किया जाए, आम इंसान तो जीते जी मर जाए | महेंद्र सिंह बिष्ट