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अगर ऐसा हो जाए

समस्या से बढ़कर,शर्म हो जाए, विश्वाश से बढ़कर, भ्रम हो जाए, चापलूसी ज्यादा बढ़कर, कम कर्म हो जाए, गुस्सा नर्म से बढ़कर , गर्म हो जाए, सरकारी फर्म से बढ़कर ,प्राइवेट फर्म हो जाए, इंसानियत से बढ़कर ,धर्म हो जाए, रिस्तों में प्यार से बढ़कर, पैसा हो जाए, पत्रकार सच से बढ़कर,झूठ दिखाने लग जाए, लोकतंत्र होने से बढ़कर ,दिखावे का हो जाए, अगर ये सब हो जाए तो फिर क्या किया जाए, आम इंसान तो जीते जी मर जाए | महेंद्र सिंह बिष्ट 

(अतीत,भविष्य,वर्तमान 3 दोस्तों से बात )

अतीत से बातें =😊 अतीत बोला मेरे बाद कैसे हो रहे हैँ दिन व्यतीत और ताने देने लग गया की क्या हुआ अब क्यों मुझे याद कर रहा है, जब तेरे पास था तू तो बस उस बेवफा कल के बारे में ही सोचता था,बहुत कुछ सुनाया 😪 वर्तमान से बातें =😊 वो बेचारा खुद ही परेशान  हताश पता नहीं क्यों, पर ये भी कह रहा था भाई जीले मेरे साथ अच्छे से,मत रह उस बेवफा भविष्य के चक्कर में बहुत कुछ कहा उसने भी 😪 भविष्य से बातें 😊= भविष्य डरा डरा कर दिलासा दे रहा था की आजा मै सब सही कर दूंगा,  पलक झपकते ही एहसास हुआ भविष्य नाम का तो कोई दोस्त ही नहीं है मेरा ये तो बस खयाल था वापस मुड़कर देखा तो अतीत और वर्तमान काफ़ी पीछे जा चुके थे और मै बीच में फंस गया था अब समझ आया सही कहते थे अतीत और वर्तमान की भविष्य बेवफा है धोखा जरूर देगा, अगर अतीत और वर्तमान से तुम वफ़ा ना करोगे , साथ तब देगा भविष्य जब वर्तमान से वफ़ा करोगे 🙏 (महेंद्र बिष्ट 

क्या समझेंगे?

बातें न समझ पाए जो वो ख़ामोशी क्या समझगे,                       आँखों का रोना ना समझ पाए जो                       वो दिल का रोना क्या समझेंगे, भरी जेब में ना समझ पाए जो, वो खाली जेब में क्या समझेंगे                       अकेले में ना पहचान पाए जो                       वो भीड़ में क्या पहचान पाएंगे, पाँव में लगी चोट पर लंगड़ा कहने लगे जो वो पाँव टूट जाने पर पता नहीं क्या कहेँगे,                       बर्गर पिज़्ज़ा में ख़ुश नहीं जो                       वो नमक रोटी में क्या ख़ुश रहेंगे अपने माँ बाप को ना समझ सके जो वो दूसरों के माँ बाप को क्या समझेंगे                      खुद की औलाद को ना समझ सके जो     ...

खुद की बात खुद के साथ

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बड़ो के झगडे में बच्चों का नुकसान 🤔

अक्सर बड़ों के झगड़ों में बच्चों का हो जाता है नुकसान तरस /वंचित रह जाते हैं अपनों के प्यार से कोई माँ के प्यार से  कोई बाप के प्यार से,                       कोई दादा दादी के प्यार से                         कोई नाना नानी के प्यार से, कोई मामा मामी के प्यार से  कोई चाचा चाची के प्यार से,                        कोई चचेरे भाई बहन के प्यार से                         कोई पडोसी भाई बहन के प्यार से, हर कोई रह जाता है किसी ना किसी के प्यार से सिर्फ बड़ों के आपसी मनमुटाव से,                 जब बच्चा खुद बड़ा हो जायेगा बचपन से                 तब जान पायेगा की वंचित रहा वो किस किस के प्यार से दिल में उसके भी खटकते रहेंगे वो लोग बचपन से गलती किसकी थी कोई समझ ना पाया बचपन ...

खुद का शरीर सर्वप्रथम बाकि द्वितीय 🙏

मजबूत शरीर  होते हुए भी  नाराज हो जिंदगी से की कुछ नहीं है मेरे पास 👎  👎 तो 7 दिन ये काम करके देखो  पहले दिन = प्रण लो की दोनों आँखों पर पट्टी बंदकर रहोगे पुरे दिन रात तक आपको एहसाश हो जायेगा की आपके पास क्या है  दूसरे दिन = प्रण लो की दोनों या एक हाथ को भी पीछे बाँध कर काम करोगे 🤔 तीसरे दिन = दोनों कान में रुई डाल दो पुरे दिन के लिए, चौथे दिन = एक पैर से चलो पुरे दिन बैशाखी लेकर 🤔 पांचवा दिन = दोनों पैर की जगह बैशाखी से चलो  छठे दिन =बिना उंगलियों के काम करो पुरे दिन  और 6 दिन ये कर के समझ गए की आपके पास सब कुछ है  तो आपको 7वें की दिन जरुरत ही नहीं पड़ेगी आजमाने के लिए 😊  कुछ पंक्ति और  की 👎 कर पहचान अपनी खुद से, तेरा शरीर एक पूरी दुनिया है, हिफाजत कर उसको यूँ छोटी सी  पल भर की चिंता में  दफ़न ना कंप्यूर से भी तेज इस दिमाग़ को, मुस्किले आएंगी जाएंगी पर एक बार शरीर गया तो  कुछ वापस ना आएगा ना तू ना तेरे अपने  कहेँगे सारे तुझे ही की जो खुद का ना हुआ  वो हमारा क्या होता 🫣 इसलिए कर पहचान खुद से खुद की  तेरे...

आज दिन का सार

उठा सुबह चह चाहाती चिड़िया, सूरज की रोशनी पाँव पसारे हुए थी, उठकर नमन किया भगवान को की एक सुबह और जिंदगी mei ला दी मेरे, परिवार वाले सब उठ गए थे बच्चों के साथ खेलकर थोड़ा, फिर नाहा धोकर पूजा करके, नास्ता किया, श्रीमती जी ने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार किया  फिर हम साथ मैं चले अपना अपना थैला उठा कर बच्चे स्कूल और मै दफ्तर का, छोड़कर बच्चों को स्कूल, मै बैठा रिक्शा से होकर मेट्रो के रास्ते सीधे दफ्तर  रोज की तरह हजारों चेहरे दिखाई दिए आज भी कोई हँसता हुआ, कोई मायुश सा दिखा,  पहुँच कर दफ़्तर काम जो शुरू किया दिन का कुछ पता नहीं चल, पर आज एक चीज अजीब सी हुई  उबासी आ रही थी मुझे बार बार आज, कल से थोड़ा थी पर आज ज्यादा, पड़ा मैंने उसके बारे मैं जो तो पता चला ये बीमारी का रूप भी जो सकती है, धक्का सा लगा ये पढ़कर पर किसको बताऊ इस तन्हाई भारी जिंदगी मैं खुद को ही बताना पड़ता है, तो मैंने ये तय किया कल से रोज सुबह टहलने जाऊंगा स्वास्थ्य पर ध्यान दूंगा, खुद के लिए ना सही अपनी बेटी के लिए जियूँगा, फिर काम ख़त्म करके मै वापस थैला टांगे घर की ओर चला, रिक्शा बस मेट्रो से होकर घर पहुंच गया ...