आज दिन का सार
उठा सुबह चह चाहाती चिड़िया, सूरज की रोशनी पाँव पसारे हुए थी,
उठकर नमन किया भगवान को की एक सुबह और जिंदगी mei ला दी मेरे,
परिवार वाले सब उठ गए थे बच्चों के साथ खेलकर थोड़ा,
फिर नाहा धोकर पूजा करके,
नास्ता किया,
श्रीमती जी ने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार किया
फिर हम साथ मैं चले अपना अपना थैला उठा कर बच्चे स्कूल और मै दफ्तर का,
छोड़कर बच्चों को स्कूल,
मै बैठा रिक्शा से होकर मेट्रो के रास्ते सीधे दफ्तर
रोज की तरह हजारों चेहरे दिखाई दिए आज भी कोई हँसता हुआ, कोई मायुश सा दिखा,
पहुँच कर दफ़्तर काम जो शुरू किया दिन का कुछ पता नहीं चल,
पर आज एक चीज अजीब सी हुई
उबासी आ रही थी मुझे बार बार आज,
कल से थोड़ा थी पर आज ज्यादा, पड़ा मैंने उसके बारे मैं जो तो पता चला ये बीमारी का रूप भी जो सकती है,
धक्का सा लगा ये पढ़कर पर किसको बताऊ इस तन्हाई भारी जिंदगी मैं खुद को ही बताना पड़ता है,
तो मैंने ये तय किया कल से रोज सुबह टहलने जाऊंगा स्वास्थ्य पर ध्यान दूंगा, खुद के लिए ना सही अपनी बेटी के लिए जियूँगा,
फिर काम ख़त्म करके मै वापस थैला टांगे घर की ओर चला,
रिक्शा बस मेट्रो से होकर घर पहुंच गया |
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