क्या समझेंगे?

बातें न समझ पाए जो
वो ख़ामोशी क्या समझगे,
                      आँखों का रोना ना समझ पाए जो
                      वो दिल का रोना क्या समझेंगे,
भरी जेब में ना समझ पाए जो,
वो खाली जेब में क्या समझेंगे
                      अकेले में ना पहचान पाए जो
                      वो भीड़ में क्या पहचान पाएंगे,
पाँव में लगी चोट पर लंगड़ा कहने लगे जो
वो पाँव टूट जाने पर पता नहीं क्या कहेँगे,
                      बर्गर पिज़्ज़ा में ख़ुश नहीं जो
                      वो नमक रोटी में क्या ख़ुश रहेंगे
अपने माँ बाप को ना समझ सके जो
वो दूसरों के माँ बाप को क्या समझेंगे
                     खुद की औलाद को ना समझ सके जो
                     वो दूसरे की औलाद को क्या समझेंगे
दूध और छाँच में फर्क ना समझ सके जो,
वो आंसू और पानी में क्या फर्क समझेंगे,
                       खुद के धर्म को ना समझ सके जो
                       वो मनुष्य धर्म क्या समझ पाएंगे,
दिल में जगह ना दे पाए जो 
वो क्या घर में जगह दे पाएंगे,
                       दूसरों की दावत में खाना बर्बाद करें जो
                  वो कैसे खुद की दावत में रोक पाएंगे,
इंसान होकर भी इंसान नहीं जो
वो क्या इंसानियत दिखाएंगे  |   (महेन्द्र सिंह बिष्ट )
        





                       





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