(औरों से क्या उम्मीद करूँ)
मेरी आँखों को मै खुद नहीं देख पाया तो औरों से क्या उम्मीद करू
मेरी बातों को मै खुद नहीं सुन पाया तो औरों से क्या उम्मीद करूँ
मेरे दिल से मै खुद दिल ना लगा पाया तो औरों को क्या उम्मीद करूँ,
मै खुद को खुद की आदत ना बना पाया,तो औरों से क्या उम्मीद करूँ
मै खुद से खुद को ना जगा पाया तो औरों से क्या उम्मीद करू,
मेरा दर्द मै खुद नहीं समझ पाया तो औरों से क्या उम्मीद करू
मै खुद की जिंदगी का मूल्य ना समझ सका तो औरों से क्या उम्मीद
करूँ | (महेंद्र सिंह बिष्ट)
waoo
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